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ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि में साधक

 

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ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि में साधक का विकास मुख्य होता है संस्था का विकास या सुरक्षा गौण होती है | इसलिए वे कभी अन्य संस्थाओं जैसा मेनेजमेंट रहने नहीं देते | उडियाबाबा ने ध्यान करनेवाले डॉक्टर को हल चलाने भेज दिया और हल चलानेवाले किसान को ध्यान करने बिठा दिया | जब मित्र संत ने कहा कि इससे तो खेती बिगडजायेगी और उस किसान का ध्यान लगेगा नहीं, उसकी रूचि खेती में थी और डॉक्टर कि रूचि ध्यान में थी | तब बाबा ने कहा कि रूचि ही तो बांधती है. मुझे
उनको रूचि के बन्धन से मुक्त करना है | खेती बिगड जाय तो बिगड जाय पर उनका विकास होना चाहिए | बड़े बड़े मेनेजमेंट करनेवाले आये आश्रम में लेकिन वे टिक नहीं पाये क्यों कि वे अपना विकास नहीं चाहते थे |अहंकार का विसर्जन नहीं चाहते थे, अहंकार का पोषण चाहते थे | सेवा कराकर उनका अहंकार पोषकर
संस्था का विकास करने से तो संस्था बनाने का उद्देश्य ही मारा जाता है | एकबार ऐसे मेनेजमेंट सुधारने के इच्छुक कुछ वकील, डॉक्टर आदि सज्जन रमण महर्षि के आश्रम में भी गये थे | महर्षि शांत गहरे मौन में बैठे रहे और वे बुद्धिजीवी कुछ बोल न सके. तब महर्षि ने कहा, “कुछ लोग अपने सुधार के लिए आश्रम में नहीं आते. आश्रम को सुधारने के लिए आते है | उनका अपना सुधार कब होगा ?” यह सुनकर वे चुप हो गये. इसलिए आप इस बात के लिए किसीको दोषी मत मानो |
ऐसा सोचना ही दोष है कि ब्रह्मज्ञानी के आश्रम में हम चाहे ऐसा मेनेजमेंट हो | क्या आप उनके गुरु हो कि उनको सिखाना चाहते हो कि मेनेजमेंट कैसा होना चाहिए ? आप अच्छे मेनेजमेंट वाली कोई दूसरी संस्था खोज लो |

संतों के सेवा कार्य

 

 

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ईसाई मिशनरियां, इस्लाम के प्रचारक भारत में धर्मांतरण करके अपने धर्म की बस्ती बढाने के लिए हर साल अरबों डॉलर खर्च करते है | कम्युनिस्ट एवं बहु राष्ट्रिय कंपनियां भी हिंदुओं को धर्म भ्रष्ट करने के लिए एवं अपनी संस्कृति से विमुख करने के लिए अरबों डॉलर खर्च करती है ताकि उनका इस देश को लूटने का तथा उसे आगे चलकर कम्युनिस्ट राष्ट्र बनानेका लक्ष्य सिध्ध हो सके | तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकार विधर्मियों के साथ मिलकर हिंदुओं को लूटने में सहयोग देती है | ऐसे समय भी भारत के संत इस संस्कृति को बचाने के लिए और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए तन, मन ,धन से सेवा करते है फिर भी उनको पैसे नहीं रखने चाहिए या बिजनेस नहीं करना चाहिए ऐसा कहनेवाले हिंदू जो खुद तो धर्म और संस्कृति की रक्षा के प्रति अपना दायित्व नहीं समझते और संतों को उपदेश देते है वे कितने भोले है जैसे कोई कहे कि विदेशी आक्रांताओ, आतंकवादियों, चोर लूटेरों के पास तो भले आधुनिक शस्त्र रहे लेकिन उनसे जनता की सुरक्षा करनेवाले पुलिस और मिलिटरी के जवानों को निःशस्त्र रहना चाहिए. ऐसे भोले लोगों की भी रक्षा करते है संत महापुरुष. उनकी निंदा नहीं करते और उनसे उपराम नहीं हो जाते. जिसे लोग बिजनेस समझते है वह भी वास्तवमें राष्ट्र की जनता की सेवा के लिए अनिवार्य प्रकल्प ही होते है |

१. संतों के उपदेश का प्रचार करने से संस्कृति की रक्षा हो सकेगी | लोग पाश्चात्य विकारी प्रभाव से बचेंगे. नैतिक मूल्यों का और आध्यात्मिक सामर्थ्य का विकास होगा | इसके लिए सत्साहित्य और ऑडियो वीडियो को बेचना अनिवार्य है. इसमें भी वे बिजनेस करने वाली कंपनियों की अपेक्षा बहुत सस्ते दर से इन चीजों को उपलब्ध कराते है | इसका कोई विकल्प है क्या ? यदि ऐसी कंपनियों को बिक्री के अधिकार दे देंगे तो वे इतने सस्ते दाम में नहीं बेचेंगे और लोगों को लूटने का प्रयास करेगी | यदि मुफ्त में देने लगे तो भी लोग कहेंगे कि उनके साहित्य और सत्संग में दम नहीं है इसलिए मुफ्त में बाँट रहे है, और मुफ्त में मिली हुई चीज का लोग आदर नहीं करेंगे |

२. लोगों को मंत्र दीक्षा देनेके बाद आवश्यक सामग्री जैसे के माला, आसान, साहित्य आदि सब नगरों एवं गांवों में मिलते नहीं है | जहाँ मिलते है वहाँ भी बेचनेवाले duplicate माल देकर लोगों को लूटते है. इसलिए इन चीजों को भी सस्ते दाम में उपलब्ध कराना एक सेवा ही है |

३. आरोग्य के विषय में सिर्फ उपदेश देनेसे लोगों को लाभ नहीं होता. आयुर्वेद के शुद्ध औषधीय सर्वत्र उपलब्ध नहीं होती | सच्चे आयुर्वेद के डॉक्टर भी अपनी औषधियाँ बनाकर मरीजों को देते है जिससे मरीज को स्वास्थ्य लाभ हो क्योंकि बड़ी बड़ी कंपनियां शुद्ध द्रव्यों से औषधियां नहीं बनाती और आयुर्वेदिक औषधियों की शुद्धि की जाँच करने के कोई साधन नहीं है जैसे एलोपथी की दवाईयों के है | इसलिए शुद्ध औषधियां सस्ते दाम में उपलब्ध कराना भी एक सेवा ही है | इससे लोगों को सैकडो अरबों रुपये का फायदा होता है, उनकी अनावश्यक ऑपरेशनों से रक्षा होती है और विदेशी कंपनियों की लूट पर नियंत्रण होने से देश को सैकडों अरबों रुपये का फायदा होता है. देश की संपत्ति देश में ही रहती है, विदेशियों के पास नहीं जाती |

 

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४. चाय कोफ़ी तथा कोकाकोला पेप्सी से स्वास्थ्य और धन की कितनी हानि होती यह बता देना एक बात है और उसके विकल्प के रूप में आयुर्वेदिक चाय, स्वास्थ्य वर्धक पेय पदार्थ उनको उपलब्ध कराना दूसरी बात है | जब तक हानिकारक पेय का विकल्प नहीं देंगे तब तक लोग उसे छोड़ नहीं सकेंगे. ऐसे ही फास्टफूड, साबुन, सौंदर्य प्रसाधन, शेम्पू, आदि से कितनी हानि होती है यह बताने के बाद उनके विकल्प के रूप में सस्ते दाम में खजूर, मुल्तानी मिटटी, आयुर्वेदिक साबुन और शेम्पू आदि उपलब्ध कराना भी एक सेवा ही है | इस से लोगों को सैकडो अरबों रुपये का फायदा होता है, और विदेशी कंपनियों की लूट पर नियंत्रण होने से देश को सैकडों अरबों रुपये का फायदा होता है. देश की संपत्ति देश में ही रहती है, विदेशियों के पास नहीं जाती |

५. भारत की जनता के सबसे गरीब वर्ग का भी शोषण करनेके लिए स्वास्थ्यप्रद प्राकृतिक नमक के स्थान पर स्वास्थ्य को हानी पहुंचानेवाले आयोडीन नमक का प्राकृतिक नमक की बिक्री पर रोक लगाकर इतना प्रचलन बढ़ा दिया गया कि प्राकृतिक नमक किराना की सब दुकानों पर मिलना मुश्किल हो गया | ऐसे शोषकों से जनता को बचानेके लिए सस्ते दाम में प्राकृतिक नमक उपलब्ध कराना भी सेवा ही है | और जिनको आयोडीन नमक की आदत पड़ गई हो उनको वह भी सस्ते दाम में उपलब्ध कराना सेवा है. इस तरह जो लोग संतों के सेवा कार्य को समझ नहीं पाते वे ही उनको बिजनेस नहीं करना चाहिए ऐसा बकवास करते है |

ज्ञानवान

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आत्मपद को पाकर आनंदित होता है और वह आनंद कभी दूर नहीं होता,

क्योंकि उसको उस आनंद के आगे अष्टसिद्धियाँ तृण के समान लगती हैं।

हे रामजी ! ऐसे पुरुषों का आचार तथा जिन स्थानों में वे रहते हैं, वह भी सुनो।

कई तो एकांत में जा बैठते हैं,

कई शुभ स्थानों में रहते हैं,

कई गृहस्थी में ही रहते हैं,

कई अवधूत होकर सबको दुर्वचन कहते हैं,

कई तपस्या करते हैं,

कई परम ध्यान लगाकर बैठते हैं,

कई नंगे फिरते हैं,

कई बैठे राज्य करते हैं

कई पण्डित होकर उपदेश करते हैं,

कई परम मौन धारे हैं,

कई पहाड़ कीकन्दराओं में जा बैठते हैं,

कई ब्राह्मण हैं,

कई संन्यासी हैं,

कई अज्ञानी की नाईं विचरते हैं |